Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

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Page 168
________________ ३९ श्री शान्तिसागरचरित्र | ततो चलसमित्या हि धर्ममुद्योतयन् पथि । ग्रामं पुरं समुल्लंघ्य मथुरायां समागतः ॥ ५८ ॥ श्रीजम्बुस्वामिनं नत्वा सिद्धभूमिं सुसिद्धिदाम् । तत्क्षेत्रं परमं रम्यं ध्यानयोग्यं निरीक्ष्य च ॥ ५९ ॥ वर्षायोगो धृतस्तत्र जगत्पूज्येन योगिना । कदाचोपवने ध्यानं कदाचिजिनमन्दिरे ॥६०॥ प्रभुपार्श्वे श्मशाने च कदाचिन्नगरे वरे । एवं ध्यानं सदा कुर्वन् वर्षायोगं व्यतीतवान् ||६१ अर्थ — वे आचार्य समिति पूर्वक वहांसे भी चले और मार्ग में धर्मका उद्योत करते हुए, नगर तथा गांवोंको उल्लंघन कर मथुरानगर में आये | वहां पर उन्होंने जम्बूस्वामीको नमस्कार किया और सब सिद्धियों को देनेवाली सिद्धभूमिको नमस्कार किया । तदनंतर उस क्षेत्रको परम मनोहर और ध्यानके योग्य देखकर उन जगत्पूज्य योगिराजने वहींपर वर्षायोग धारण किया । वे आचार्य कभी वागमें ध्यान करते थे, कभी जिनमंदिर में ध्यान करते थे, कभी भगवान् के समीपमें ध्यान करते थे, कभी श्मशानमें ध्यान करते थे और कभी श्रेष्ठ नगर में ध्यान करते थे । इसप्रकार सदा ध्यान करते हुए उन्होंने वर्षा - योग पूर्ण किया ।

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