________________
४२
श्रीशान्तिसागरचरित्र। अर्थ- अनेक श्रावकोंके साथ तथा उत्तम राजपुरुषोंक साथ और जय जय शब्द करते हुए अनेक प्रकारके बाजे बजाते हुए तथा आज हम लोग धन्य हुए हैं इसप्रकार कहते हुए अनेक मुख्य मुख्य धर्मात्मा भव्यजीवोंके साथ उन आचार्यने देहलीनगरमें प्रवेश किया । सर्वेषां भावनां ज्ञात्वा धार्मिकाणां शुभात्मनाम् । वर्षायोगः कृतस्तत्र संघेन गुरुणा सह ॥७२॥ ___अर्थ- शुभ आत्माको धारण करनेवाले समस्त धर्मास्मा पुरुषोंकी भावनाओंको जानकर आचार्यमहाराजने समस्त संघके साथ वहींपर चातुर्मास धारण किया। जिनालयेषु सर्वेषु स्थित्वा संबोध्य धार्मिकान् । ध्यानं जपं तपः कुर्वन वर्षायोगं व्यतीतवान् ॥७३ ___अर्थ- वहांपर सब जिनालयोंमें रहे और सब धार्मिक लोगोंको उपदेश दिया। इसप्रकार जपतप और ध्यान करते हुए वर्षायोग समाप्त किया। ततोऽचलन्महावीर क्षेत्रं परमसुंदरम् । तत्र प्राप्य तुतस्तेन वर्द्धमानो महाप्रभुः॥७॥
अर्थ- तदनंतर संघके साथ सबको परम सुंदर महावीरजी क्षेत्रको चले और वहांपर पहुंचकर भगवान वर्धमान महाप्रभुको नमस्कार किया तथा उनकी स्तुति की। नरेन्द्रा बहवो मार्गे वचनं शिवदं प्रियम् ।। आकर्ण्य शान्तिसिंधोश्च नेमुस्तचरणद्वयम्॥७५॥