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श्रीशान्तिसागरचरित्र। ३१ वे नागपुरनगरमें पहुंचे। वहांके समस्त श्रावकोंने मिलकर आचार्य महाराजका अपूर्व स्वागत किया। पाययन् धर्मपीयूषं दिनानि कतिचिद्गुरुः । स्थितस्तदुपदेशेन त्यक्तं शूद्रजलं जनैः ॥२३॥ . अर्थ-वे आचार्य धर्मामृतका पान कराते हुए कुछ दिनतक वहां ठहरे। उनके उपदेशसे बहुतसे लोगोंने शूद्र जलका त्याग किया। प्राच्या दक्षिणतस्तेषां विहारः शान्तिदोऽभवत् । मागें तदुपदेशेन बभूवुर्धार्मिका जनाः ॥२४॥ मोचयन् मदिरापानं जीवानां मांसभक्षणम् । स्वात्मवत्प्राणिनो रक्षन् शान्तिदः शांतिसागरः॥ उलंध्य ग्रामनद्यद्रीनगरं पुरपत्तनम् । प्राप्तः सम्मेदशैलं स संघन सह तारकः ॥२६॥ . अर्थ- उन आचार्य शांतिसागरका दक्षिण दिशासे पूर्वदिशाकी ओर होनेवाला विहार अत्यंत शांति देनेवाला हुआ था। मार्गमें उनके उपदेशसे बहुतसे लोग धर्मात्मा होगये थे। सबको शांति देनेवाले वे आचार्य शांतिसागर मार्गमें अनेक जीवोंके मद्यपानका त्याग कराते जाते थे, मांसभक्षणका त्याग कराते जाते थे और आत्माके समान समस्त प्राणियोंकी रक्षा करते जाते थे। इसप्रकार अनेक गांव, नदी, पर्वत, नगर, पुर पत्तनोंको उल्लंघन कर तरणतारण वे आचार्य संघके साथ