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श्रीशान्तिसागरचरित्र। नाशयित्वा महामोहं कृत्वा पुण्य संचयम् ।। व्यतीतः पुण्यदस्तत्र वर्षायोगो महात्मना ॥१८॥
अर्थ- तदनंतर उन मुनिराजने अनेक मुनियोंके साथ वहांसे विहार किया। मार्गमें भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए वे छोटे बाहुबलि पर्वतपर पहुंचे। वहांपर कल्लप्पा शास्त्रीने बहुत सुंदर गुफाएं बनवाई हैं, उमी कल्लप्पा शास्त्रीको भक्तिके वश होकर तथा धर्मप्रेम धारण कर वे आचार्य वहां ठहरे। वहांपर उन्होंने मनोहर जिनालयको देखकर तथा स्थानको धर्मका साधक समझकर वर्षायोग धारण किया । उन महात्माने वहांपर उत्तम ध्यान किया, महामोहका नाश किया और महापुण्यका संचय किया। इसप्रकार पुण्य उत्पन्न करनेवाला वह वर्षायोग समाप्त किया। जीवास्तदुपदेशेन बभूवुः भुवि धार्मिकाः । संजाला तिनः केचित्केचिद्धर्मप्रभावकाः ॥१९॥ वर्णिनः क्षुल्लकाः केचित्केचिद्दर्शनशुद्धकाः। दयालुः गुरुभक्तश्च नीतिज्ञो वीरसागरः ॥१०॥ क्षमानिधिस्तपस्वी च योगी श्रीनेमिसागरः। दृढव्रती द्वितीयोपि शान्तिदो नेमिसागरः॥१॥ ऐते त्रयोऽनगाराश्च संजाता धर्मवर्द्धकाः। एवं दक्षिणे महती जाता धर्मप्रभावना ॥२॥