Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र । कुलभूषणमानम्य नत्वा श्रीदेशभूषणम् ॥९॥ वभूव कृतकृत्यश्च पूतः संघचतुर्विधः। स्वात्मानं चिंतयन् कुर्वन् भवहारि तपो जपम् ॥ स्वरसं पाययन् धीरः पिवनात्मामृतं रसम् । पुनस्ततो चलत्स्वामी संबोध्याखिलश्रावकान् ॥ ___अर्थ- वे आचार्य शांतिसागरस्वामी उनमें, स्थलमें और पर्वतोंपर धर्मध्यान करते थे, आनंद मंगल करते जाते थे, मिथ्यात्वको नाश करते जाते थे और सम्यग्दर्शनको स्थापन करते जाते थे। इसप्रकार दयानिधि धीरवीर वे आचार्य नदी, पर्वत और नगरोंको उल्लंघन करते हुए कुंथुलगिरी पर्वतपर पहुंचे। वहांपर उन्होंने चारों प्रकारके संघके साथ भगवान् कुलभूपणको नमस्कार किया और भगवान देशभूपणको नमस्कार किया। इसप्रकार वह चारों प्रकारका संघ पवित्र हुआ और कृत कृत्य हुआ। फिर वे सामी समस्त श्रावकोंको उपदेश देकर अपने शुद्ध आत्माका चितवन करते हुए, जन्ममरणरूप संसारको नाश करनेवाले जप और तपश्चरण करते हुए, अपने आत्मासे उत्पन्न हुए, आन्मामृत रसको स्वयं पान करते हुए तथा अन्य भव्य जीवोंको पिलाते हुए वहांसे आगे चले। सखारामात्मजश्रेष्ठिरावजीप्रार्थनावशात् । विहरन् मार्गदेशेषु प्राप्तः शोलापुरं सुधीः ॥१२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188