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श्री पार्श्वनाथस्तुति ।
नरेन्द्रवंद्योऽपि मृगेन्द्रवंद्यः श्रीपार्श्वनाथो मुदमातनोतु ॥२॥
अर्थ — जो पार्श्वनाथ भगवान् अत्यंत पुण्यकर्मके उदयसे धरणेन्द्र के द्वारा पूजे गये हैं, देवोंके इंद्रोंके द्वारा पूजे गये हैं, अहमिद्रोंके द्वारा वंदना किये गये हैं, चक्रवर्ती आदि राजाओंके द्वारा वंदना किये गये हैं और पशुओंके इन्द्रोंके द्वारा भी वंदना किये गये हैं ऐसे भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी हम सबके लिये आनंद देवें ।
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क्षेमं प्रजानां भुवि मंगलं च कुर्वन् जिनेशो भविकप्रमोदम् । श्री पार्श्वनाथः शुशुभे प्रजासु तारासु चन्द्रो विमलो यथैव ॥३॥
अर्थ - जिसप्रकार निर्मल चन्द्रमा आनंद मंगल देता हुआ और सबको प्रसन्न करता हुआ ताराओं में शोभायमान होता है, उसीप्रकार समस्त प्रजामें क्षेम कुशल करते हुए, संसार में आनंद मंगल करते हुये और भव्यजीवोंको प्रसन्न करते हुए जिनेन्द्रदेव भगवान् पार्श्वनाथस्वामी समस्त प्रजा में शोभायमान हो रहे थे ।
आकाशमार्गात्सहसा पतंतीं विनाशभूतां प्रविलोक्य ताराम् ।