Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ १४ श्रीशान्तिसागरचरित्र । शनैःशनैश्च सर्वत्र विहरन् तत्र देशके । कोण्णूरनगरं प्राप्तो अव्यलोकसुखप्रदम् ॥५१॥ तत्रत्यानां जनानां सोनुरोधाद्धि विशेषतः । धर्मबुध्या च कृतवान् वर्षायोगं महामनाः ॥५२ मुनियोग्या गुहास्तत्र पर्वते सन्त्यनेकशः । तास्वेकदा च ध्यानस्थः सतिष्टते सुधर्मधृत् ॥५३ नागराजः समागय बुध्वां तं ग्रावखण्डकम् । चढित्वा च गुरोर्दैहे क्रीडां चक्रे विशेषतः ॥५४ मुनिस्तु ध्यानसंलीनो निश्चलो प्रावखण्डवत् । जीविते मरणे तुल्यः सुध्यानान्न चचाल सः॥५५ ततः स नागराजोपि स्पृष्टा तचरणं प्रभोः । पवित्रयित्वा स्वात्मानं निजस्थाने गतस्तदा ।।५६ अर्थ- तदनंतर उन मुनिराजने धीरे धीरे उस देश में सब जगह विहार किया और फिर भव्यजीवोंको सुख देनेवाले कोण्णूर नगरमें जा पहुंचे। महा उदार हृदयको धारण करनेवाले मुनिराज शांतिसागरने वहांके लोगोंके विशेष अनुरोधसे तथा धर्मवुद्धिसे वहींपर वर्षायोग धारण किया। वहांपर पर्वतमें खुदी हुई मुनियोंके निवास करने योग्य अनेक गुफाएं हैं, उनमें से किसी एकमें किसी एक दिन धर्मको धारण करनेवाले वे

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188