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श्रीशान्तिसागरचरित्र। १३ बाजोंके शब्दोंसे तथा जयजयकारके मधुर शब्दोंसे उत्सव मना रहे थे और धर्मकी वृद्धि होनेसे बहुत ही हर्ष मना रहे थे। विशालसरसा नद्या पर्वतेन मनोहरम् । फलपुष्पचयैवृक्षैः शोभितं च जिनालयैः ॥४७॥ एनापुरं ततो धीरो गतः संबोधयन् जनान् । बहुभिः श्रावकैः साकं प्राविशन्नगरं शनैः ॥४८॥ जिनगौडादिभव्यानां श्रीमुनिः शान्तिसागरः। बालगौडादिभक्तानामनुरोधात्क्षमानिधिः ॥४९॥ संबोधयन् जनान् तत्र वर्षायोगे स्थितः सुधीः । कुर्वन् जपं तपो ध्यानं चातुर्मासं व्यतीतवान् ॥५०
अर्थ- तदनंतर वे मुनिराज' श्रीशांतिसागर स्वामी एनापुर गांवमें पहुंचे। वह एनापुर गांव विशाल सरोवरसे, नंदीसे और पर्वतसे मनोहर है, तथा फल पुष्पोंसे सुशोभित अनेक वृक्षोंसे और जिनालयोंसे विभूपित है ऐसे 'उस गांवमें धीरवीर, बुद्धिमान्, क्षमाके खजाने ऐसे मुनिराज शांतिसागरने अनेक श्रावकोंके साथ प्रवेश किया। वहांपर जिनगौडा और वालगौडा आदि जिनभक्त भव्यजन रहते हैं, उनके अनुरोधसे उन मुनिराजने वहांपर चातुर्मास योग धारण किया तथा अनेक भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए और जप-तप-ध्यान करते हुए चातुर्मास व्यतीत किया। . .