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श्रीशान्तिसागरचरित्र |
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इस प्रार्थनाको स्वीकार कर यात्रा के लिये चले । वे आचार्य स्थल, वन, पर्वत और ग्रामोंमें उत्तम पुण्य उत्पन्न करनेवाला ध्यान करते थे, अनेक श्रावकों के साथ उत्तम मंगल करते जाते थे और भगवान् जिनेन्द्रदेव के भक्त भव्यजीवोंके वित्तको प्रसन्न करते जाते थे । इसप्रकार अनेक नगर, गांव, वन और देशको उल्लंघन कर धीरे धीरे वे आचार्य मैसूर राज्यके भीतर पहुंचे । श्री श्रवणबेलगुले वंदित्वा गोमटप्रभुम् । भव्यान्स बोधयंस्तत्र दिनानि कतिचित्स्थितः ॥
अर्थ - उन आचार्यने श्रीश्रवणबेलगुलमें जाकर भगवान् गोमट्टदेवकी वंदना की और फिर भव्यजीवोंको उपदेश देते हुए कुछ दिनतक वहां ठहरे ।
भेरीनिभे गिरौ रम्ये गोम्मटेशो विराजते । द्विपंचाशत्करोत्तुंगः शांतः परमसुंदरः ||६६ || तत्सन्मुखे गिरौ भान्ति भवनानि जिनेशिनाम् । सुदीर्घप्रतिमाभिश्च राजितानि जितैनसाम् ॥६७॥ भद्रबाहुमुनेः पादौ गुहायां स्तः सुपुण्यदौ । वंदित्वा सकलान् देवः प्राप्तपुण्यस्तदाभवत् ॥६८
अर्थ- वहाँपर नगाडेके आकारके मनोहर पर्वतपर गोमट्टस्वामी विराजमान हैं, वे बावन हाथ ऊंचे हैं, अत्यंत शांत हैं और परम सुंदर हैं । उनके सामने ही एक पर्वत और