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श्रीशान्तिसागरचरित्र। ततोपि गतवान् धीरो नेजग्रामं शनैः शनैः। वर्षायोगो धृतस्तत्र क्षुल्लकेन महात्मना ॥३८॥
अर्थ- धीरवीर वे महात्मा क्षुल्लक धीरे धीरे विहार करते हुए, नेजग्राममें पहुंचे और उन्होंने वहींपर चातुर्मास __ योग धारण किया ।
स्वात्मानं चिंतयत् कुर्वन स्वात्मकार्य तपो जपम् । ततःसंबोधयन भव्यान् गतवान् नसलापुरम्॥३९
__ अर्थ- अपने शुद्ध आत्माके स्वरूपका चितवन करते हुए, जपतप तथा अपने आत्माके उद्धारका शुभकार्य करते हुए __ और अनेक भव्यजीवोंको मोक्षमार्गमें लगाते हुए वे क्षुल्लक
नसलापुरमें पहुंचे। रम्यैर्जिनालयैर्भव्यश्रावकैश्च सुशोभितम् । धार्मिक नगरं बुध्वा वर्षायोगो धृतस्तदा ॥४०॥ ____अर्थ- मनोहर जिनालयोंसे तथा भव्य श्रावकोंसे सुशोभित उस धार्मिक नगरको देखकर वहांपर भी वर्षायोग धारण किया। मिथ्यात्वं ध्वंसयन धीरः सम्यक्त्वं स्थापयन विभुः। तपश्च विविधं कुर्वन् चातुर्मासं व्यतीतवान् ॥४१॥ __ अर्थ- सबके स्वामी और धीरवीर उन क्षुल्लकने कितने लोगोंके मिथ्यात्वको नष्ट किया और सम्यग्दर्शनको स्थापन किया तथा अनेक प्रकारका तपश्चरण करते हुए उन्होंने वह