Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Ravjibhai Kevalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 141
________________ १२ श्रीशान्तिसागरचरित्र । चातुर्मास भी पूर्ण किया। बहुभिः श्रावकैः सार्द्ध यरनालपुरं गतः । मार्गे संबोधयन् भव्यात् कुर्वन सन्मंगलं भुवि॥४२ __अर्थ- तदनंतर मार्गमें अनेक भव्यजीवोंको धर्मोपदेश देते हुए और संसारमें आनंद मंगल वढाते हुए वे क्षुल्लक अनेक श्रावकोंके साथ यस्नालपुर पहुंचे। चतुर्विंशतिशते षट् चत्वारिंशत्तमे शुभे । शिवंगते जिने वीरे शुमाष्टाह्निक पर्वणि ॥४३॥ फाल्गुन शुक्लपक्षे च चतुर्दश्यां महातिथौ । श्रीदेवेन्द्रगुरोः पार्श्वे दीक्षा जैनेश्वरी शुभा॥४४॥ देवधर्मगुरुश्राद्धसाक्षिकं शुद्धचेतसा ।। गृहीता शुभसायाह्ने शांतिसागरयोगिना ॥४५॥ श्रावकाः सकलास्तत्र हर्षिता वृषवर्द्धनात् । गीतवादित्रशब्दैश्च जपशब्दैः कृतोत्सवाः ॥४६॥ ___ अर्थ-वीरनिर्वाण संवत् चौवीससौ चालीसके शुभ अष्टान्हिकाके पर्वमें फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशीकी महातिथिके दिन सांयकालके शुभमुहूर्तमें योगिराज उन शांतिसागर महाराजने अपने शुद्ध हृदयसे देव, धर्म, गुरु और श्रावकोकी साक्षीपूर्वक अपने गुरु श्रीदेवेन्द्रकीर्तिके समीप जैनेश्वरी शुभ दीक्षा धारण की । उससमय समस्त श्रावक लोग गीत और

Loading...

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188