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श्रीमहावीरस्तुति।
अर्थ- तदनंतर वे भगवान अपने आत्माका राज्यप्राप्त करनेके लिये संसार, भोग, राज्य और कुटंबवर्गसे विरक्त होगये और धीरवीर वे भगवान् इच्छानिरोधरूप श्रेष्ठ तपश्चरणको करते हुए कुछ वर्षतक मुनि अवस्था ही ठहरे रहे थे। कामारिजेता वर बाल्यकाले
कर्मारिजेता निजसौख्यहेतोः । जातोऽसि वंद्यश्च नरामरेन्द्र
स्ततश्च भव्यैर्हदि चिन्तनीयः ॥४॥
अर्थ- भगवान महावीर स्वामीने अपने श्रेष्ठ वाल्य _ कालमें ही कामरूप शत्रुको जीत लिया था और अपना आत्म __ सुख प्राप्त करनेके लिये कर्मरूप शत्रुओंको जीत लिया था।
इसीलिये वे भगवान् इन्द्र चक्रवर्ती आदिके द्वारा वंदना करने __ योग्य होगये थे और भव्य जीवोंके द्वारा हृदयमें चितवन करने योग्य होगये थे। त्वत्पादयुग्मं सुखशान्तिदं वा
स्वमोक्षदं शास्वत वासदं वा । मार्गः प्रणीतः शरणागतेभ्य
स्त्वया प्रभो शास्वतशांतिदश्च ॥५॥
अर्थ- हे प्रभो ! आपके चरणकमल सुख और शांति___ को देनेवाले हैं, स्वर्ग और मोक्षको देनेवाले हैं और सदा
रहनेवाला सिद्धपद देनेवाले हैं, हे नाथ ! जो जीव आपके