________________
श्रीमहावीरस्तुति । मातास्त्यहिंसैव पिताप्यहिंसा
सखास्त्यहिंसा तनयोप्यहिंसा। भ्रातास्त्यहिंसा वररक्षकत्वा
द्भार्याप्यहिंसैव सुखस्य योगात् ॥२२॥ अर्थ- इस संसारमें माता भी अहिंसा ही है, पिता भी अहिंसा ही है, मित्र भी अहिंसा ही है और पुत्र भी अहिंसा ही है। अहिंसा ही इस जीवकी अच्छीतरह रक्षा करती है इमलिये भाई भी अहिंसा ही है और इस संसारमें सुख देनेवाली भी अहिंसा ही है इसलिये सहधर्मिणी भी अहिंसा ही है। त्वयाप्रणीतं ननु सर्वमेतत्
सर्वेषु धर्मेषु दयाप्रधानः। धर्मोस्त्यहिंसैव यथार्थरूपः
श्रेष्ठश्च पूज्यो हृदि धारणीयः ॥२३॥ अर्थ- हे भगवन् महावीर स्वामीन् ! यह सब कथन आपने ही निरूपण किया है तथा सब धर्मोमें दयाप्रधान अहिंसाको ही धर्म बतलाया है । हे प्रभो! यही आपका कहा हुआ धर्म यथार्थ है, श्रेष्ठ है, पूज्य है और हृदयमें सदा धारण करने योग्य है। त्वमेव देवः परमः प्रसन्न
स्तवैव वाणी भवनाशिनी च ।