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श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तुति।
श्रीमहावीरस्तुति। देव्याः श्रीप्रियकारिण्या सिद्धार्थस्य महीपतेः । जगचक्षुर्महावीरो दयाधर्मस्य रक्षकः ॥१॥ . ____ अर्थ- तीनों लोकोंको देखने के लिये एक चक्षु और दयाधर्मके रक्षक भगवान महावीर स्वामी महारानी प्रियकारिणी और महाराज सिद्धार्थके पुत्र हुए थे। मिथ्यात्वजाले पतिताच जीवान
समानसूनां खलु हिंसने च । . · विलोक्य तेषां लुदयाद्रचित्तः
उद्धारहेतोहदि चिंतितोऽभूत् ॥२॥ अर्थ- जो जीव मिथ्यात्वके जाल में फंस रहे हैं और प्राणोंकी हिंसा करने में मग्न हैं उनको देखकर उनके उद्धार करनेके लिये दयाके कारण अत्यंत द्रवीभूत चित्तको धारण करनेवाले महावीर स्वामी हृदयमें चिंता करने लगे थे।
जातो विरक्तो भवभोगराज्यात् ___ कुटुंबवर्गानिजराज्यहेतोः। इच्छानिरोधं सुतपश्चकुर्वन्
स्थितः स धीरः कतिचिद्धि वर्षम् ॥३॥