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श्रीनेमिनाथस्तुति। ध्यानामिना कर्मरिपूं श्वदग्ध्वा
श्रीनेमिनाथो भवरोगवैद्यः। सिद्धः प्रसिद्धः सकलैश्च वंद्यो
जातो जिनेन्द्रो वर नेमिनाथः ॥६॥ अर्थ- हे भगवन् नेमिनाथस्वामिन् ! आप संसाररूपी रोगको अपूर्व वैद्य हैं, आप अपनी ध्यानरूपी अग्निसे समस्त कर्मरूपी शत्रुओंको जलाकर जिनराज हुए हैं, संसार प्रसिद्ध सिद्ध हुए हैं और सबके द्वारा वन्दना करने योग्य होगये हैं। विनात्मभावं भवसिंधुमध्ये
दुःखप्रदेऽहं पतितोस्मि देव । मां सौख्यदे शुद्धचिदात्मभावे
कृपानिधे स्थापय भव्यभानो ॥७॥ अर्थ- हे देव ! आत्माके शुद्धभावोंकी प्राप्तिके विना मैं अत्यंत दःख देनेवाले इस संसाररूपी महासागरके मध्य में पडा हुआ हूं, हे दयानिधि ! हे भव्य जीवोंको मार्ग दिखलाने वाले सूर्य ! आप कृपाकर मुझे सुख देनेवाले आत्माके चैतन्य रूप शुद्धभावोंमें स्थापन कर दीजिये। श्रीनेमिनाथं भुविपूज्यपादं
देवाधिदेवं खलु विश्ववंद्यम् ।