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__ श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तुति । आनन्दकन्दं परमं विशुद्धं
ध्यायामि गायामि निजात्मशान्त्यै ॥८॥
अर्थ- हे भगवन् नेमिनाथ स्वामिन् ! इस संसारमें भाएके चरणकमल पूज्य हैं, आप देवोंमें भी सर्वोत्कृष्ट देव हैं, संसारके द्वारा वंदनीय हैं, आनंदकंद हैं, सर्वोत्तम हैं और परम विशुद्ध हैं । हे नाथ ! ऐसे आपका मैं अपने आत्माकी शान्ति प्राप्त करनेके लिये ध्यान करता हू और आपके गुणोका गान करता हूं।
श्रीपार्श्वनाथस्तुति।
वामाया विश्ववंद्याया अश्वसेनस्य सूपतेः । पार्श्वनाथः प्रजापूज्यो नीतिनिष्ठो जगत्प्रभुः॥१॥
___ अर्थ-- जो भगवान् पार्श्वनाथस्वामी प्रजाके द्वारा पूज्य हैं, नीतिमें तत्पर हैं और जगतके प्रभु हैं, वे पार्श्वनाथ संसारके द्वारा पूज्य महारानी वामादेवी और महाराज अश्वसेनके पुत्र हुए थे। पुण्योदयाद्यः धरणेन्द्रपूज्यः
सुरेन्द्रवंद्योऽप्यहमिन्द्रवंद्यः ।