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६६ श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तुति ।
त्वत्तुल्यमूर्तिर्युवने न दृष्टा ___ मया न लब्धा सुखशान्तिदात्री। ततः कृपाब्धे हि विचार्य चैव
मानन्ददे ते पतितोस्मि युग्मे ॥८॥ अर्थ- हे भगवन् ! आपकी मूर्ति सुख और शान्तिको देनेवाली है । आपकी मूर्ति के समान इस संसारमें मैने अन्य कोई मूर्ति नहीं देखी और न मैने आपकी मूर्तिके समान अन्य कोई मूर्ति प्राप्त की है। हे कृपासागर ! यही समझकर में अत्यंत आनंद देनेवाले आपके चरण कमलोमें आ पड़ा हूं।