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श्रोचतुर्विंशतिजिनस्तुति । हे मल्लिनाथ भगवन् ! यही विचार कर मैं भक्तिपूर्वक सुख और शांति देनेवाले आपके चरणकमलोंमें आ पडा हूं। हे देव ! आप उन कर्मोसे मेरी रक्षा कीजिये।
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श्रीमुनिसुव्रतनाथस्तुति। पद्मावत्याः क्षमामूर्तेः सुमित्रस्य महीभृतः । मुनिसुव्रतनाथश्च जातः सुव्रतदायकः ॥१॥ __ अर्थ- श्रेष्ठ व्रतोको देनेवाले भगवान् मुनिसुव्रतनाथ क्षमाकी मूर्ति महारानी पद्मावती और महाराज सुमित्रके पुत्र
राज्यं विहाय जिननाथ ! तपःसुतप्त्वा योहादिकर्मनिवहं गुणघातिनं तत् । क्षिप्वाशु चाप्य नवकेवललब्धिलक्ष्मी जातो व्रतेश भुवनत्रय पूजनीयः ॥२॥
अर्थ- हे जिननाथ मुनिसुव्रत परमदेव ! आपने सबसे पहले राज्यका त्याग किया, घोर तपश्चरण किया और गुणोंको घात करनेवाले मोहनीय आदि घातिया कर्मोको शीघ्र ही नाश कर नवकेवललब्धिरूप लक्ष्मी प्राप्त की। हे व्रतोंके स्वामी