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________________ ७६ श्रोचतुर्विंशतिजिनस्तुति । हे मल्लिनाथ भगवन् ! यही विचार कर मैं भक्तिपूर्वक सुख और शांति देनेवाले आपके चरणकमलोंमें आ पडा हूं। हे देव ! आप उन कर्मोसे मेरी रक्षा कीजिये। Don श्रीमुनिसुव्रतनाथस्तुति। पद्मावत्याः क्षमामूर्तेः सुमित्रस्य महीभृतः । मुनिसुव्रतनाथश्च जातः सुव्रतदायकः ॥१॥ __ अर्थ- श्रेष्ठ व्रतोको देनेवाले भगवान् मुनिसुव्रतनाथ क्षमाकी मूर्ति महारानी पद्मावती और महाराज सुमित्रके पुत्र राज्यं विहाय जिननाथ ! तपःसुतप्त्वा योहादिकर्मनिवहं गुणघातिनं तत् । क्षिप्वाशु चाप्य नवकेवललब्धिलक्ष्मी जातो व्रतेश भुवनत्रय पूजनीयः ॥२॥ अर्थ- हे जिननाथ मुनिसुव्रत परमदेव ! आपने सबसे पहले राज्यका त्याग किया, घोर तपश्चरण किया और गुणोंको घात करनेवाले मोहनीय आदि घातिया कर्मोको शीघ्र ही नाश कर नवकेवललब्धिरूप लक्ष्मी प्राप्त की। हे व्रतोंके स्वामी
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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