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श्रीमुनिसुव्रतनाथस्तुति । ७९ मुनिसुव्रतनाथ ! आप इसीलिये तीनों लोकोंके द्वारा पूजनीय होगये हैं।
कृत्वा विहारमपि नाथ शुभार्यखण्डे भव्यान् निरूप्य सुखदं खलु मोक्षमार्गम् । जातो जिनेन्द्र मुनिसुव्रतनाथ पूज्यः इन्द्रादिभिर्मुनिगणैर्नरनायकैश्च ॥३॥
अर्थ- हे नाथ ! फिर आपने शुभ आर्यखंडमें विहार किया और भव्य जीवोंको सुख देनेवाले मोक्षमार्गका निरूपण किया। इसीलिये, हे जिनेन्द्र ! हे मुनिसुव्रतनाथ आप इन्द्रादिक देवोंके द्वारा, असंख्य मुनियोंके द्वारा और चक्रवर्ती आदि अनेक राजाओंके द्वारा पूज्य होगये हैं।
सर्वाणि कर्मशिखराणि चिदात्मवत्रैः क्षिप्रं विभेद्य भुवने मुनिसुव्रतोऽभूत् । वंद्यः सदैव सुनिनाथ नरामरेन्द्रैः पूज्यः सुशान्तिसुखदो हृदि चिन्तनीयः॥४॥
अर्थ- हे प्रभो ! मुनिसुव्रतनाथ ! फिर आपने शुद्ध चैतन्यरूप वज्रसे समस्त कर्मरूपी शिखरोंको शीघ्र ही नाश कर दिया था और इसीलिये आप मुनिनाथ, नरनाथ और इन्द्रादि देवोंके द्वारा बंदनीय होगये हैं, पूज्य होगये हैं, शान्ति और सुख देनेवाले होगये हैं और सबके हृदयमें चिन्तयन करने योग्य होगये हैं।