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श्रीश्रेयांसनाथस्तुति। सुशोभित है, प्रमाणसे सिद्ध है और समरत जीवोंके द्वारा मान्य है । हे नाथ ! ऐसा वह आपका कहा हुआ परमाथसूत्र संसारके संतापको शान्त करने के लिये सर्वथा समर्थ है ।
त्वं विश्वबंधुभवरोगहर्ता __ भव्याशयानां सुखशान्तिदाता। ध्येयस्ततो नाथ सदा प्रपूज्यो
वाकायचित्तेन जिनेशभक्तैः ॥६॥ अर्थ- हे भगवन् ! आप तीनों लोकोंके बंधु हैं, संसाररूपी रोगको नाश करनेवाले हैं और भव्य जीवोंको सुख शान्ति देनेवाले हैं इसीलिये हे नाथ, भगवान् जिनेन्द्रदेवके भक्त जीवोंके द्वारा मनवचनकायसे आप पूजा करने योग्य हैं और सदा ध्यान करने योग्य हैं। त्वद्वाक्प्रसादं सुखदं च लब्ध्वा
__ अव्याश्च पर्यायमतिं त्यजन्ति । सर्वार्थसिद्धिं स्वधनं स्वराज्यं
लब्धत्रा लभन्ते स्वसुखं क्रमेण ॥७॥ __ अर्थ- हे भगवन् ! इस संसारमें रहनेवाले भव्यजीव __ आपके वचनोंकी सुख देनेवाली प्रसन्नताको पाकर अपनी पर्याय
बुद्धिको छोड देते हैं। तथा सर्वार्थसिद्धिके सुख, अनंत चतुष्टय रूप आत्मधन और समवसरणरूप आत्मराज्यको पाकर अनुक्रमसे मोक्षरूप आत्मसुखको प्राप्त होते हैं।