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श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तुति । कृतःप्रयत्नश्च ततस्त्वमेव
दयानिधिः शान्तिसुखप्रदोसि ॥३॥ अर्थ- हे भगवन् श्रेयांसनाथ ! आपने भव्य जीवोको सब जीवोका कल्याण करनेवाले और शान्नि देनेवाले मोक्ष मार्गमें स्थापन करनेके लिये प्रयत्न किया है । इसीलिये प्रभो ! आप ही दयानिधि हैं और आप ही शान्ति और सुखको देनेवाले हैं।
स्वर्गापवर्गस्य निजात्मसिद्धे. ____र्गि:प्रणीतश्च विभो । त्वयैव । पुण्यस्य पापस्य फलं प्रणीतं
संसारदुःखस्य विमोचनाय ॥४॥ अर्थ- हे भगवन् हे विभो ! आपने संसारके दुःखोंको नाश करनेके लिये स्वर्ग मोक्षका मार्ग बतलाया है, अपने आत्माकी सिद्धिका मार्ग बतलाया है और पुण्यपापका फल बतलाया है। संसारतापं शमितुं समर्थ
त्वया प्रतिं परमार्थसूत्रम् । स्याद्वादरूपं नयधर्मयुक्तं
प्रमाणसिद्धं निखिलैश्च मान्यम् ॥५॥ अर्थ- हे प्रभो ! आपने जो परमार्थ सूत्रका निरूपण किया है वह स्याद्वाद रूप है, नयोसे सिद्ध किये हुए धर्मोसे