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श्रीवासुपूज्यजिनस्तुति । श्रीवासुपूज्यजिनस्तुति ।
पूज्याया विजयायाश्च वसुपूज्यस्य भूभृतः। वासुपूज्यो जगद्वन्द्यो जातो हि सुखदायकः ॥१॥
अर्थ- जगतके द्वारा वंदनीय और सब जीवोंको सुख देनेवाले भगवान् वासुपूज्य स्वामी अत्यंत पूज्य महारानी विजया और महाराज वसुपूज्यके पुत्र हुए थे। गणेन्द्रश्राद्धैर्मुनिभिश्च भक्त्या
स्वात्मोपलब्ध्यर्थमवश्यमेव । श्रीवासुपूज्यो हृदि चिन्तनीयः
सुपूजनीयः खलु वन्दनीयः ॥२॥ अर्थ- गणधर देवोंकों, उत्तम श्रावकोंको और मुनियोंको अपने शुद्ध आत्माकी प्राप्तिके लिये भगवान् वासुपूज्यको भक्तिपूर्वक अवश्य ही अपने हृदयमें चिन्तवन करना चाहिये, उनकी पूजा करनी चाहिये और उनकी वंदना करनी चाहिये । सुत्या न तोषः खलु निन्दया वा
रोषो न देवे त्वयि वीतरागे । सम्पूजकेभ्यो मुनिनायकेभ्यः
स्वर्गापवर्गस्य तथापि दाता ॥३॥