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__४६ श्रीचतुर्विशतिजिनस्तुति ।
श्रेयन प्रभो ! मे शिवसौख्यसिद्धि
स्वात्मोपलब्धि परिणामशुद्धिम् । बोधि समाधिं कुरु नाथ शीघ्र___मन्यन्न याचे जिनराज किंचित् ॥८॥
अर्थ- हे जिनराज ! हे प्रभो ! हे श्रेयांसनाथ ! आप मेरे लिये मोक्षसुखकी सिद्धि कीजिये, अपने आत्माकी प्राप्ति कीजिये, मेरे परिणामोंकी शुद्धि कीजिये, रत्नत्रयकी प्राप्ति कीजिये और उत्तम ध्यानकी प्राप्ति कीजिये। हे प्रभो! मै आपसे और कुछ नहीं मांगता हूँ ।
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