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श्रीविमलनाथस्तुति। होता रहता हैं । इसी बातको वार वार विचार कर मैं मोक्ष देनेवाले आपके चरण कमलोमें आ पडा हूं । प्रक्षालयित्वा तव पूतपादौ
जातौ करौ मे सफलौ पवित्रौ । शान्तिप्रदं ते वदनं च दृष्ट्रा
नेत्रे च जाते सफले पवित्रे ॥६॥ अर्थ- हे प्रभो ! आपके पवित्र चरण कमलोंका प्रक्षालन कर मेरे ये दोनों हाथ प्रवित्र और सफल होगये हैं तथा अत्यंत शान्ति देनेवाले आपके मुखको देखकर मेरे ये दोनों नेत्र भी पवित्र और सफल होगये हैं। सौख्यप्रदं ते भवनं च गत्वा
पादौ च जातौ सफलौ पवित्रौ । स्तोत्रं पठित्वा तव मोक्षदं च
जातं मुखं मे सफलं पवित्रम् ॥७॥ अर्थ- हे नाथ ! सुख देनेवाले आपके भवन में जाकर मेरे ये दोनो चरण सफल और पवित्र होगये हैं तथा मोक्ष देनेवाली आपकी स्तुति पढकर मेरा यह मुह भी सफल और पवित्र होगया है। दिव्यध्वनि ते शिवशान्तिदं च
श्रुत्वैव कौँ सफलौ पवित्रौ ।