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श्रीश्रेयांसनाथरतुति! श्रीश्रेयांसनाथस्तुति।
विष्णुश्रियो जगन्मातुः सतो विष्णोर्जगत्प्रभो । श्रेयसो दायकः श्रेयान् जातो वंद्यो नरामरैः ॥१॥
अर्थ- सब प्रकारके कल्याणोंको देनेवाले और इन्द्र चक्रवर्ती आदिके द्वारा वन्दना करने योग्य भगवान् श्रेयांसनाथ परमदेव जगतकी माता महारानी विष्णुश्री और जगतके पिता सर्वोत्तम सज्जन महाराजा विष्णुके पुत्र उत्पन्न हुए हैं। त्वयोदिते श्रेयसि मोक्षमार्गे
निजात्मरूपे परभावहीने । ज्ञानात्मके वा चरणात्मके वा
स्थातुं प्रयत्नश्च कृतो मयायम् ॥२॥ अर्थ- हे भगवन् ! आपने जिस मोक्षमार्गका निरूपण किया है वह कल्याण करनेवाला है, अपने आत्माके स्वभावरूप है, पुद्गलादिक परभावोंसे रहित है, सम्यग्ज्ञानात्मक है अथवा सम्यक् चारित्र रूप है । हे नाथ, ऐसे आपके कहे हुए मोक्षमार्गमें स्थिर रहनेके लिये मैने यह प्रयत्न किया है। श्रेयन् त्वया श्रेयसि मोक्षमार्गे
शान्तिप्रदे स्थापयितुं सुभव्यान