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श्रीसुपार्श्वनाथस्तुति । भगवान सुपार्श्वनाथने शुद्ध आत्माके द्वारा सिद्ध करने योग्य श्रेष्ठ सिद्धपरमेष्ठीके भावोंमें निश्चलतासे स्थिर रहनेके लिये प्रयत्न किया था। स्थित्वा सुपार्श्वेन निजात्मधर्म
कृतं च युद्धं सुखशान्तिहर्ता । दुष्कर्मणा दस्युशतेन साई
वैराग्यवत्रं च करे गृहीत्वा ॥६॥ अर्थ- भगवान् सुपार्श्वनाथने अपने आत्माके स्वभावमें स्थिर होकर और वैराग्यरूपी वज्रको हाथमें लेकर सुख और
शान्तिको हरण करनेवाले अशुभ कर्मरूपी सैकडों शत्रुओंके __साथ युद्ध किया था।
समस्तकमाणि सुदुःखदानि
ध्यानैश्वशुक्लैर्विनिहत्य शीघ्रम् । सुपार्श्वनाथश्च नरामरेन्द्र
र्जातश्च पूज्यो हदि चिन्तनीयः ॥७॥ अर्थ- भगवान सुपार्श्वनाथने शुक्लध्यानके द्वारा महा दुःख देनेवाले समस्त कर्मोको शीघ्र ही नाश कर दिया था और इसीलिये वे भगवान् इन्द्र चक्रवर्ती आदिके द्वारा पूज्य होगये हैं और हृदयमें चिंतन करने योग्य होगये हैं।