________________
३० श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तुति ।
वाक्कायचित्तस्य विशुद्धहेतोः
___ संसारबीलस्य विनाशहेतोः। स्वर्मोक्षदं तं हि सुपार्श्वनाथं
ध्यायामि चित्ते प्रणमामि भक्त्या ॥८॥ अर्थ- मैं अपने मन, वचन, कायको अत्यंत शुद्ध बनाने के लिये और संसारके वीजभूत कपायोको नाश करनेके लिये स्वर्ग मोक्ष देनेवाले उन सुपार्श्वनाथको भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूं और अपने हृदयमें उनका ध्यान करता हूं।