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२८ श्रीचतुर्विशतिजिनम्तुति ।
अर्थ- यह शरीर हड्डी, लघिर आदिसे भरा हुआ है, कमसे भग है और चमडेसे ढका है, अन्यंत वृणित है, भयंकर है, मल मृत्रसे मग है और अन्यंत दुगंधमय है ऐम इस शरीरसे भगवान सुपार्श्वनाथ म्बामी अपने आन्म मुख्की प्राप्तिके लिये विरक्त होगये थे। लब्धास्तिपुण्यरिह राज्यलक्ष्मी
द्वेपानिमिः कुटिला स्वभावात् । दुःखपदा सेति विवोध्य सुक्ता
देवेन मोक्षरय सुखस्य हेतोः ॥४॥ अर्थ- यह राज्यलक्ष्मी यद्यपि पुण्यसे प्राप्त होती है नथापि हेपम्पी अग्निकी स्थान है, न्यभावसे ही कुटिल है और दुःख वाली है । यही समझकर भगवान सुपार्श्वनाथ स्वामीने माक्षका सुख प्राप्त करने के लिये उम राज्य लक्ष्मीका त्याग कर दिया था। स्वात्मानुभूत्या च कषायनाशा
देहोपभोगादि विरक्तभावात् । शुद्धात्मसाध्ये वरसिद्धभावे
स्थातुं सुपार्श्वेन कृतः प्रयत्नः ॥५॥ अर्थ- भगवान् सुपाश्वनाथने अपनी आत्माकी स्वानुधृति प्रगट की थी, कपायोको नाश किया था और देह तथा गरीर आदिसे विरक्त भाव धारण किया था इन्ही सब कारणोंसे