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श्रीशंभवनाथस्तुति ।
श्रीशंभवनाथस्तुति। पूज्याया जयसेनायाः जितारेच जगत्पितुः। जातः शंभवनाथश्च गुणसिंधुः क्षमानिधिः॥१॥ ___अर्थ- भगवन् शंभवनाथ स्वामी पूज्य महारानी जयसेना और जगतपिता महाराज़ जितारिके पुत्र थे, वे भगवान् गुणोंके समुद्र थे और क्षमाके खजाने थे। त्वं शंभवः को भवरोगतापैः ।
क्षुब्धस्य भव्यस्य च राजवैद्यः भव्याशयानां भवरोगहतो
वैद्यो यथा देव गदापहारी ॥२॥ अर्थ- हे शंभवनाथ भगवन् ! आप इस पृथ्वीपर संसाररूपी रोगके संतापसे अत्यंत क्षुब्ध हुए भव्यजीवोंके लिये राजवैद्य हैं । हे देव, जिस प्रकार वैद्य रोगोंको दूर करनेवाला है उसीप्रकार आप भी भव्य जीवोंके संसाररूपी रोगको दूर करनेवाले हैं। पीत्वासुरां मोहमयीं च तीत्रां
निजात्मधर्म गहला बभूवुः । अतीवमन्दाः खलु ये च जीवाः
प्रस्थापितास्ते परथिधर्मे ॥३॥