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श्रीपद्मप्रभस्तुति । श्रीपद्मप्रभस्तुति।
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पुण्यवत्याः सुसीमायाः धारणस्य जगद्विभोः । प्रद्मप्रभो दयापुंजो जातः संसारनाशकः ॥१॥
अर्थ- भगवान पद्मप्रभदेव, अत्यंत पुण्यवती महारानी सुसीमा और जगतके प्रभु महाराज धारणके पुत्र हैं, वे भगवान् दयाके पुंज हैं और जन्ममरणरूप संसारको नाश करनेवाले हैं। कारिजालं समशान्तिशस्त्रै
विभेद्य वीरः खलु लोलयैव । जातोसि वंद्यश्च नरामरेन्द्र
नमामि भक्त्या भवतापशान्त्यै ॥२॥ अर्थ- महापराक्रमी भगवान पद्मप्रभने कर्मरूपशत्रओंके समूहको समता और शान्तिरूपी शस्त्रोंसे लीलामात्रमें नाश कर दिया है और इसीलिये वे भगवान् इन्द्र और चक्रवर्तियोंके द्वारा पूज्य हुए हैं। अतएव में भी अपने संसारके संतापको शान्त करनेके लिये भक्तिपूर्वक उनको नमस्कार करता हूं। पद्मप्रभः पद्मसमानवर्णः
श्रियैव चालिंगितभव्यमूर्तिः। भव्याशयानां च विकाशकर्ता
यथैव भानुवरपंकजाताम् ॥३॥