Book Title: Aspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Author(s): M A Dhaky, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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सौजन्यमूर्ति पं० मालवणिया का बहुमान
डा० ईश्वर लाल देव
अनुवादक-डा० रविशंकर मिश्र गुजरात के लोगों की संस्कृत में रुचि है ? गुजरात में संस्कृत का कोई विद्वान् हो सकता है ? संस्कृत के ज्ञान की वृद्धि अधिकांशतः उत्तर भारत में, थोड़ी बंगाल में, थोड़ी महाराष्ट्र
और दक्षिण भारत में हुई, परन्तु इस विषय में गुजरात का नाम भी ले लेते हैं, 'गर्जराणां मुखे भ्रष्टः, शिवोऽपि शवामगतः—गुजरात के लोगों का मुख भ्रष्ट है, वे लोग शिव को शव बना डालते हैं—ऐसा आक्षेप प्राचीन काल में गुजरात के लोगों पर था, गुजरात के ब्राह्मण भी संस्कृतज्ञ बहुत कम समझे जाते थे, इसलिए वे उत्तर भारत के ब्राह्मणों की अपेक्षा बहुत निम्न माने जाते थे, उत्तर भारत के इन ब्राह्मणों में से कुछ ब्राह्मणों को यहाँ गुजरात में आने के लिए सोलंकी राजाओं ने तैयार किया और इस प्रकार उत्तर भारत के जो ब्राह्मण गुजरात में आये, वे औदीच्य ब्राह्मण कहलाये, उत्तर भारत के ये ब्राह्मण पहले तो आने को तैयार नहीं थे, परन्तु सोलंकी राजाओं ने इस विषय में युक्ति से काम लिया, इन्होंने इन ब्राह्मण गुरुओं की पत्नियों को स्वर्णदान दिया तथा गुजरात में उन्हें भूमिदान देने को भी कहा । इस प्रकार इन ब्राह्मण-पत्नियों के आग्रह पर उत्तर भारत के ये ब्राह्मण गुजरात आये, आचार्य हेमचन्द्र ने 'सिद्ध हैम' नामक संस्कृत व्याकरण रचा। कलिकाल सर्वज्ञ इन्होंने उस काल के समग्र ज्ञान के निष्कर्ष रूप संस्कृत में अन्य भी अनेक ग्रंथ लिखे, जिससे काश्मीर व अवन्ती ने गुजरात की संस्कृत विषयक विद्वत्ता को थोड़ा बहुत स्वीकार किया।
अर्वाचीन समय में मणिलाल नभुभाई संस्कृत, वेदान्त और योग के एक प्रखर विद्वान् गिने जाते थे, स्वामी विवेकानन्द इनसे मिलने गुजरात में आये थे। जिस धर्मपरिषद् में स्वामी विवेकानन्द अमरीका गये थे, उसमें जाने के लिए इन्हें निमन्त्रण मिला था, परन्तु संयोगवशात् (अनारोग्य और द्रव्य दुर्लभता के कारण) ये वहाँ नहीं जा सके । 'लाइट आफ् एशिया' नामक भगवान बुद्ध विषयक इस अंग्रेजी महाकाव्य के सर्जक एडविन आर्नाल्ड स्वयं इनके पास भारतीय धर्म परम्परा के विषय में जानकारी प्राप्त करने हेतु आये थे और नभुभाई ने उन्हें अपने यहाँ पाटले पर बिठाकर खिलाया था। मणिलाल नभुभाई के पश्चात् आनन्दशंकर ने गुजरात के संस्कृत विषयक विद्वत्ता के गौरव को अक्षुण्ण रखा, उनको काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कूलपति चुना गया। आजकल कुलपति पद हेतु विद्वत्ता बाधक नही होती है, कुलपति को सूक्ष्म यन्त्र से अच्छी तरह जाँच-परख लिया जाता है, जिससे अमक मर्यादा से कम विद्वत्ता न हो इसकी पूरी जानकारी की जा सके । आनन्दशंकर ने गुजरात की संस्कृत विद्वत्ता का नाम रोशन किया, इनके कुलपति के रूप में चुनाव हेतु गाँधी जी ने पं० मालवीय जी से पेशकश कर थोड़ा सा भाग लिया था। अपने उत्तराधिकारी के रूप में आचार्य आनन्दशंकर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हेतु डा० राधाकृष्णन् की पेशकश की थी। आचार्य आनन्द
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