Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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उपकार कभी नहीं भूल सकते जिन्होंने कुन्दकुन्दके साहित्यका गहन चिन्तन, अवगाहन एवं स्वानुभव करके हम लोगों तक सरल रूपमें पहुँचाया ताकि हम आत्म-कल्याणके द्वारा इस जीववको सफल बना सकें ।
प्रस्तुत ग्रन्थ
प्रस्तुत 'अट्ठ पाहुड' (अष्टपाहुड) में उपदेश प्रधान आचरणमूलक तथा तत्त्वचिन्तन युक्त आठ पाहुड ग्रन्थ निबद्ध हैं । इनमें आचार्य कुन्दकुन्दके "आचार्यत्व” अर्थात् विशाल श्रमण संघके अनुशास्ता रूपके सर्वत्र दर्शन होते हैं । इस ग्रन्थका प्रकाशन कुछ संस्थाओंसे हुआ भी है किन्तु षट्प्राभृतपर श्रुतसागर सूरिकी संस्कृत टीका सहित प्रस्तुत संस्करण की प्रथमावृत्ति जैनधर्म-दर्शन एवं साहित्य के विख्यात एवं उद्भट विद्वान्, अनेक ग्रन्थोंके प्रणेता, सम्पादक एवं अनुवादक सागर ( म०प्र०) निवासी डॉ० पं० पन्नालालजी साहित्याचार्यके अनुवाद सहित श्री शान्तिवीर दिगम्बर जैन संस्थान, श्री महावीरजी ( राजस्थान) से वीर निर्वाण सं० २४९४, ई० सन १९६८ में प्रकाशित हुआ था। यह संस्करण दुर्लभ हो जानेसे इसे अब इसी अनुवाद सहित अनेकान्त विद्वत् परिषद् सोनागिर से नये रूपमें प्रकाशित करके बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया गया है।
सोलहवीं सदी के बहुश्रुत विद्वान् भट्टारक श्रुतसागरसूरिको सम्भवतः छह पाहुड ही उपलब्ध रहे होंगे, तभी उन्होंने लिंग पाहुड और सील: पाहुडको छोड़ दंसण, चारित, सुत्त, बोध, भाव और मोक्ख - इन छह पाहुडोंपर विद्वत्तापूर्ण, विस्तृत टीका लिखी ।" " षट्प्राभृतादि संग्रह " के नामसे श्रुतसागरसूरिकी टीका सहित पं० पन्नालालजी सोनी द्वारा सम्पादित यह ग्रन्थ जैन साहित्यके महान् उद्धारक विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमीके सद्प्रयत्नसे माणिकचंद्र ग्रन्थमाला, बम्बईसे सन् १९२० में प्रकाशित हुआ था। बाद में दो पाहुड और उपलब्ध होने पर अष्टपाहुडका प्रकाशन हुआ । अष्ट पाहुडपर भाषा वचनिका ( ढूंढारी भाषा) में पं० जयचन्द्रजी छावड़ा द्वारा लिखित टीका भी काफी लोकप्रिय है ।
"अट्ठ पाहुड" में कुल पाँच सौ तीन गाथायें हैं । इसमें ग्रन्थकारने आठ पाहुडोंके माध्यम से जैनधर्म-दर्शनका हार्द रत्नत्रयधर्म, श्रमणाचार और सच्चे श्रामण्य आदि विषयोंका बड़ी ही स्पष्टतासे विवेचन करते हुए शिथिलाचारसे सतत् सावधान रहनेके लिए बारम्बार आगाह किया है ताकि विशुद्ध वीतराग
१. आमेर शास्त्र भण्डार ग्रन्थसूची ( पृष्ठ १५९ ) के उल्लेखानुसार यहाँ षट्पाहुड पर पं० मनोहर की भी संस्कृत टीका वाली पाण्डुलिपि उपलब्ध है, जिसका लिपि ० १७९० है ।
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