Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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हैं। इसी कारण इन तीनों का इकट्ठा नाम 'नाटकत्रयी' पड़ गया। वैसे अमृतचन्द्राचार्य ही ने समयसारको नाटककी संज्ञा दी, क्योंकि इन्होंने जीव-अजीव आदि तत्त्वोंका निरूपण ऐसा किया है जैसे नाटकके सभी पात्र आते-जाते हों और इस कारण अपनी टीकामें इस ग्रंथको नाटकका स्वरूप दिया है । कविवर बनारसीदासने तो इसीके आधार पर प्राचीन हिन्दी में कवित्तबद्ध 'नाटक समयसार' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की ।
समयसार के माध्यमसे आचार्य कुन्दकुन्दने आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मतत्व और आध्यात्मिक रूपकी जिस ऊँचाईको छुआ है वह सम्पूर्ण विश्व साहित्यमें दुर्लभ है । इस दृष्टिसे यह अनुपम ग्रन्थरत्न है ।
यह कथन ठीक ही है कि समयसारमें पारमार्थिक दृष्टिसे ही सारी चर्चाकी गई है, अतएव अधिकार साधारण जनको उसका कोई-कोई भाग सामाजिक और नैतिक व्यवस्थाको उलट-पलट कर देने वाला प्रतीत हो सकता है ।"
पं० बलभद्रजी ने भी ठीक ही लिखा है कि आत्माके शुद्ध स्वरूपका वर्णन करने वाले समयसारकी समता अन्य कोई ग्रन्थ नहीं कर सकता । इस दृष्टिसे इसे ग्रन्थराज, आत्म धर्मका प्रतिनिधि-ग्रन्थ और जेनधर्मका एकमात्र प्राण-ग्रन्थ कहा जाये तो अत्युक्ति नहीं होगी । इस ग्रन्थकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आत्मधर्म जैसे गूढ़ विषयको इसमें अत्यन्त सरल और सुबोध रीतिसे प्रतिपादित किया गया है। दुरूह विषयको भो दृष्टान्तों के माध्यम से सहज बनाया गया है ।
पंचास्तिकाय को " संग्रह" अर्थात् "पंचत्थिसंग्रहो" कहा गया है। इसमें सम्यग्दर्शन के विषयभूत जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश - इन पाँच अस्तिकाय द्रव्योंका विवेचन है । समयसारमें सम्यग्ज्ञान के आधारभूत स्वद्रव्य -परद्रव्य का विवेचन है और पवयणसारमें सम्यग् चारित्र की व्याख्या है । इस तरह आचार्य कुन्दकुन्दने इन तीनों ही ग्रन्थोंमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका • आवश्यक विस्तार के साथ सुसम्बद्ध विवेचन करके मुमुक्षुजनोंके लिए साक्षात् मोक्षमार्ग प्रदर्शित किया । प्रवचनसार सुव्यस्थित रचना वाला एक दार्शनिक ग्रन्थके साथ-साथ साधक श्रमणोंके आचार-विचार संबंधी उपयोगी शिक्षाओंका
१. कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न : उपोद्घात पृष्ठ २२.
२. समयसार : सं० पं० बलभद्र जैन, प्रकाशक कुन्दकुन्द भारती, १९७८. ३. समयसारकी ७६ गाथाओंमें ३७ दृष्टान्तों द्वारा विषयको समझाया
गया है ।
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