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आराधनासमुच्चयम् १८
नियमसार नामक ग्रन्थ में कुन्दकुन्दाचार्य ने नाना गुणों और पर्यायों से युक्त जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल को तत्त्वार्थ कहा है। तत्त्वार्थसूत्र में जीव, अजीव, आम्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात को तत्त्व कहा है।
तत्व का लक्षण सत् है अथवा सत् ही तत्त्व है और यह सत् स्वरूप तत्त्व स्वभाव से ही सिद्ध है, इसलिए वह अनादिनिधन स्वसहाय है और निर्विकल्प है। इस प्रकार तत्त्व का लक्षण अनेक प्रकार से किया है। द्रव्यसंग्रह में तत्त्व को जीव, अजीव की पर्याय कहा है क्योंकि तत्त्व पर्यायस्वरूप भी है।
बहिस्तत्त्व, अन्तस्तत्त्व और परमात्मतत्त्व के भेद से तत्त्व तीन प्रकार के होते हैं।
वास्तव में, जीव ही प्रयोजनभूत तत्त्व है, इसलिए आचार्यदेव ने नियमसार की तात्पर्यवृत्ति में बहिस्तत्त्व (बहिरात्मा), अन्तस्तत्त्व (अन्तरात्मा) और परमात्मतत्त्व (परमात्मा) के भेद से तत्त्व तीन प्रकार का कहा है।
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष के भेद से तत्त्व सात हैं। इनमें पुण्य और पाप को मिला देने से नव तत्त्व (नौ पदार्थ) होते हैं।
तत्त्व, परमार्थ, द्रव्यस्वभाव, परमपरम, ध्येय, शुद्ध और परम ये सर्व एकार्थवाची हैं। ये तत्त्व ही ध्येय (ध्यान करने योग्य) हैं। तत्त्व ही द्रव्य का स्वभाव है, द्रव्यस्वरूप है। प्रश्न - भाववाची तत्त्व का द्रव्य के साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है ?
उत्तर - भाव, भाववान् द्रव्य से पृथक् नहीं है। जैसे पर्यायवान् द्रव्य से पर्याय पृथक् नहीं है अथवा द्रव्य में तत्त्व का या तत्त्व में द्रव्य का अध्यारोप भी कर लिया जाता है। जैसे गुण में गुणी का वा गुणी में गुणों का उपचार कर लिया जाता है। जैसे उपयोग रूप आत्म-गुण में आत्मा का अध्यारोप किया जाता है। 'उपयोग एवं आत्मा' उपयोग ही आत्मा है वा आत्मा ही उपयोग रूप है। अतः तत्त्व और द्रव्य कथंचित् भिन्न हैं, कथंचित् अभिन्न हैं।
अर्थ शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। वैशेषिक शास्त्र में द्रव्य, गुण, कर्म इन तीन की अर्थ संज्ञा है। अर्थ शब्द प्रयोजन अर्थ में भी है जैसे आप 'किमर्थं किसलिए यहाँ आये हैं। अर्थ शब्द धनवाची भी है अर्थात् अर्थ शब्द का अर्थ धन भी है। अर्थ शब्द का अर्थ अभिधेय भी है अथवा जो द्रव्य स्वकीय गुणपर्यायों को प्राप्त होता है वा गुण पर्यायों के द्वारा प्राप्त किया जाता है उसको अर्थ कहते हैं अथवा जो ज्ञान के द्वारा जाना जाता है, जिसका निश्चय किया जाता है, वह अर्थ है। सत्ता, सत्त्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये नव शब्द सामान्य रूप से एक द्रव्य रूप अर्थ के ही वाचक हैं।
अर्थ शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है - जिसका निश्चय किया जाता है। यहाँ पर तत्त्वार्थ शब्द तत्त्व