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सनत्कुमार चक्रवर्तीको कथा
देनेवाला था । उस सुन्दर रथकी हम प्रतिदिन भावना करते हैं, ध्यान करते है । वह हमें सम्यग्दर्शनरूपी लक्ष्मी प्रदान करे ।
जिस प्रकार अकलंक देवने सम्यग्ज्ञानकी प्रभावना की, उसका महत्त्व सर्व साधारण लोगोंके हृदयपर अंकित कर दिया उसी प्रकार और और भव्य पुरुषों को भी उचित है कि वे भी अपनेसे जिस तरह बन पड़े जिनधर्मकी प्रभावना करें, जैनधर्मके प्रति उनका जो कर्तव्य है उसे वे पूरा करें।
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उसका
संसार में जिनभगवान्की सदा जय हो, जिन्हें इन्द्र, धरणेन्द्र नमस्कार करते हैं और जिनका ज्ञानरूपी प्रदीप सारे संसारको सुख देनेवाला है ।
श्रीप्रभाचन्द्र मुनि मेरा कल्याण करें, जो गुण रत्नोंके उत्पन्न होने के स्थान पर्वत हैं और ज्ञानके समुद्र हैं ।
३. सनत्कुमार चक्रवर्तीकी कथा
स्वर्ग और मोक्ष सुखके देनेवाले श्रीअर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार करके में सम्यक् चारित्रका उद्योत करनेवाले चौथे सनत्कुमार चक्रवर्तीकी कथा लिखता हूँ ।
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अनन्तवीर्य भारतवर्षके अन्तर्गत वीतशोक नामक शहरके राजा थे । उनकी महारानीका नाम सीता था । हमारे चरित्रनायक सनत्कुमार इन्हीं के पुण्य फल थे । वे चक्रवर्ती थे । सम्यग्दृष्टियोंमें प्रधान थे । उन्होंने छहों खण्ड पृथ्वी अपने वश कर ली थी। उनकी विभूतिका प्रमाण ऋषियोंने इस प्रकार लिखा है - नवनिधि, चौदहरत्न, चौरासी लाख हाथी, इतने ही रथ, अठारह करोड़ घोड़े, चौरासी करोड़ शूरवीर, छ्यानवें करोड़ धान्यसे भरे हुए ग्राम छ्यानवें हजार सुन्दरियाँ और सदा सेवामें तत्पर रहनेवाले बत्तीस हजार बड़े-बड़े राजा, इत्यादि संसार श्रेष्ठ सम्पत्ति से वे युक्त थे । देव विद्याधर उनकी सेवा करते थे । वे बड़े सुन्दर थे, बड़े भाग्यशाली थे | जिनधर्मपर उनकी पूर्ण श्रद्धा २
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