________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] की एक रनि-हाथ, दो हस्तों की एक कुक्षि, दो कुक्षियों का एक धनुष्, दो सहस्र धनुषों का एक कोश और चार कोशों का एक योजन होता है । इसी प्रमाण से श्राराम, उद्यान, वन, वनखंड, कूप, तड़ाग,नदी, बावली, सर, देवकुल, सभा, स्तूप खाई, प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर,, प्रासाद, शृङ्गारक, त्रिकमार्ग, चतुर्मुख मार्ग, महापथ, राजमार्ग, शकट, रथ, यान, युग, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, घर, अापण, आसन, शयन, स्तम्भ, कडाह, दो इत्यादि पदार्थ जिस समय के मनुष्य होते हैं, उक्त पदार्थ उन्हीं के अंगुली से मान किये जाते हैं । इसे ही श्रात्मांगुल कहते हैं ।
अंगल तीन प्रकार से वर्णन किया गया है । जैसे-सूच्यंगुल १, प्रत. रांगुल २ और घनांगुल ३ । असत्हेतु से आकाश में एक अंगुल प्रमाण दीर्घ, तीन प्रदेशरूप विस्तीर्ण और एक प्रदेश विष्कम्भरूप को 'सूच्यंगुल' कहते हैं । सूच्यंगुल को तिगुना करने से 'प्रतरांगुल' उत्पन्न होता है । यह अंगुल प्रदेश रूप होता है। प्रतरांगुल को तिगुना करने से 'धनांगुल' होता है। वह २७ प्रदेश रूप है । इनमें सबसे छोटा सूच्यंगल है। प्रतरांगल उससे असंख्यात गुणा बड़ा है और घनांगुल उससे भी असंख्यात गुणा बड़ा है। इसी को आत्मांगुल कहते हैं।
___विष्कम्भ एक प्रदेशरूप है, उसे गुणा नहीं करना, अपितु दीर्घाकार में समरूप है और धन शब्द रूढ़ि रूप है । जब प्रतर अंगुल ६ प्रदेश रूप है उसको सूचि अंगुल से गुणा किया जाय तब घनांगुल 0 0101010101010101 २७ प्रदेशों का सिद्ध हुआ । जैसे कि- 1000101010 ___ इस असत्य हेतु से २७ प्रदेश निष्पन्न ! ० ००० ०० 100 माना जाता है । वास्तव में अखंख्यात प्रदेश रूप जानना चाहिये ।
से किं तं उस्सेहिंगुले ? अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा. परमाणु १, तसरेण २, रहरेणु ३, अग्गच बालस्स ४ । लिक्खा ५, जूश्रा य ६, जवो ७, अट्ठगुणविवटिया कमसो ।से किं तं परमाण ? दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य
For Private and Personal Use Only