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अनेकान्त-56/1-2
मे हैं। दूसरी घटना पशुओं का करुण क्रन्दन सुन विलखती राजुल तथा आर्दनेत्र हाथ जोड़े उग्रसेन को छोड़ मानवता की प्रतिष्ठा के लिए वन में तपश्चरण के लिए जाना है। इन दोनों घटनाओं ने कथा वस्तु को पर्याप्त सरस और मार्मिक बनाया है। कवि ने वसन्तवर्णन, रैवतकवर्णन, जलक्रीड़ा. सूर्योदय, सुरत, मदिरापान प्रभृति काव्य विषयो का समावेश कथा को सरस बनाने के लिए किया है। घटनाप्रवाह क्षीण होने पर भी अलंकृत वर्णनों की प्रधानता है। संध्या, प्रभात, नगर, देश, वन, नदी, पर्वत, समुद्र, द्वीप आदि प्राकृतिक वस्तुओ का सागोपांग और अलंकृत वर्णन निहित है। जीवन के विभिन्न व्यापारों और परिस्थितियों के चित्रण में पूर्वचिन्ता, प्रेम, विवाह, कुमारोदय, मधुपान, गोष्ठी, वनविहार, जलक्रीड़ा आदि का निरुपण किया गया है। कवि ने युगजीवन का चित्रण वस्तुव्यापारों और परिस्थितियों के द्वारा प्रस्तुत किया है।
भट्टारक शुभचन्द्र ने वाग्वर (वागड) प्रान्त के अन्तर्गत शाकवाट (सागवाडा) नगर में विक्रम संवत् 1608 भाद्रपद द्वितीया के दिन पाण्डवपुराण की रचना की। इसकी श्लोक सख्या 6000 है। इस रचना में भट्टारक शुभचन्द्र ने हरिवशपुराण तथा देवप्रभसूरि विरचित पाण्डवचरित्र का काफी उपयोग किया है। भट्टारक शुभचन्द्र ने हरिवश पुराणोक्त कथा तथा शब्दरचना का आश्रय लेते हुए उक्त कथा को अपनी रुचि व आम्नाय के अनुसार यत्र तत्र परिवर्द्धित भी किया है।। उदाहरणार्थ हरिवंशपुराणकार ने पाण्डवों की उत्पत्ति इस प्रकार बतलाई है
_ 'शान्तनु राजा की पत्नी योजनगन्धा थी। इससे उनके धृतव्यास पुत्र हुआ। धृतव्यास का पुत्र धृतधर्मा और उसका भी पुत्र धृतराज था। धृतराज के अम्बिका, अम्बालिका और अम्बा नाम की तीन पत्नियाँ थी। उनसे धृतराज के क्रमशः धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये तीन पुत्र हुए। इनमें धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन आदि थे। पाण्डु का विवाह कुन्ती के साथ हुआ था। उसके विवाह होने से पूर्व कन्यावस्था में कर्ण पुत्र हुआ, पश्चात् विवाहित अवस्था मे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ये तीन पुत्र हुए। नकुल और सहदेव पाण्डु की द्वितीय पत्नी भाद्री से उत्पन्न हुए थे। यहाँ भीष्म का जन्म शान्तनु की ही परम्परा में गंगा नामक माता से बतलाया गया है।