Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 252
________________ अनेकान्त-56/3-4 117 प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण होते हैं। गुण दो प्रकार के होते है:- सामान्य और विशेष। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरूलघुत्व और प्रदेशत्व यह छह सामान्य गुण सभी द्रव्यों में पाये जाते हैं। अन्य सामान्य गुणों में जीव चेतन और अमूर्तिक हैं। पुद्गल अचेतन और मूर्तिक है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल अचेतन और अमूर्तिक हैं। इस प्रकार दो-दो गुण सामान्य में सम्मलित हो जाते हैं (नय चक्र वृ. 16)। द्रव्यों के विशेष गुण इस प्रकार हैंजीव-ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि अनंत गुणों वाला है। पुद्गल द्रव्य रूप, रस, गंध, वर्ण और स्पर्श गुण वाला है। धर्म द्रव्य गति हेतुत्व, अधर्म द्रव्य स्थिति हेतुत्व, आकाश द्रव्य-अवगाहन हेतुत्व और काल द्रव्य-परिणमन हेतुत्व स्वभाव वाले हैं। द्रव्य के गुण स्वभाव और विभाव रूप में भी वर्गीकृत हैं। जीव और पुद्गल द्रव्यों का परिणमन स्वभाव और विभाव रूप में होता है। क्रियारती शक्ति उसका आधार है। जीव द्रव्य की दृष्टि से केवलज्ञानादि जीव का असाधारण स्वभाव गुण है और अगुरूलघुत्व साधारण स्वभाव गुण है। मति श्रुत आदि ज्ञान जीव के विभाव गुण हैं। इसके भी दो भेद हैं- सम्यग्मति श्रुतादि और मिथ्या मतिश्रुतादि। जीव जब पारिणमिक भाव रूप ज्ञायक ध्रुव स्वभाव का आश्रय लेता है तब आत्मानुभूति पूर्वक सम्यग्ज्ञानादि की उत्पत्ति होती है। यह सम्यग्ज्ञानादि के आश्रय से ही केवलज्ञान की पूर्णता प्राप्त होती है। इसे साधन-साध्य भाव कहते हैं। इसके अनुसार शुद्ध गुणांश से पूर्णता की प्राप्ति होती है। इस दृष्टि से द्रव्य-गुण-पर्याय त्रिपद में गुण का विशेष महत्व हैं। पर्याय तो क्षणिक होने से हेय-पर समय कही गयी है। पुद्गल द्रव्य का स्वभाव परिणमन परमाणु के रूपादि गुण हैं। विभाव परिणमन स्कंध के विभाव गुण हैं। शेष चार गुणों का परिणमन स्वभाव रूप ही कहा गया है। स्वभाव रूप गुणों को अनुजीवी गुण कहते हैं, जैसे-सम्यक्त्व, चारित्र, सुख, चेतना, स्पर्श, रस, आदि। वस्तु के अभाव-रूप गुणों को धर्म के प्रतिजीवी गुण कहते हैं, जैसे वस्तुत्व, अमूर्तत्व, अचेतनत्व आदि। प्रागभाव,

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