Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 254
________________ अनेकान्त-56/3-4 119 कर्मोपाधि रहित पर्यायें स्वभाव द्रव्य-व्यंजन पर्याय है जैसे सिद्ध एवं अविभागी परमाणु। कर्मोपाधिसहित पर्याय विभाव द्रव्य-व्यंजन पर्याय है जैसे मनुष्य, देव एवं पुदग्ल एकंघ। द्रव्य कर्म एवं भाव कर्म से रहित शुद्ध ज्ञान, दर्शन, सुख व वीर्य जीव द्रव्य की स्वभाव गुण पर्याय है। परमाणु के रूप रसादि पुद्गल द्रव्य की स्वभाव गुण पर्याय है। मति, श्रुत अवधि व मनःपर्याय ये चार ज्ञान एवं तीन अज्ञान ये सब जीव द्रव्य की विभाव गुण पर्याय है। इसके भी ज्ञान-अज्ञान विभाजक सम्यक्-मिथ्या रूप दो भेद हैं। जीव-पुद्गल द्रव्य परिणामी होने से उनकी पर्यायें स्वभाव-विभाव रूप होती हैं। शेष चार द्रव्यों की विभाव गुण पर्याय नहीं होती। स्वभाव गुण पर्याय के भी दो भेद हैं-कारण शुद्ध पर्याय और कार्यशुद्ध पर्याय। पारिणामिक भाव की परिणति कारण शुद्ध पर्याय है। द्रव्य, गुण और पारिणामिक भाव की परिणति रूप कारण शुद्ध पर्याय को कारण परमात्मा भी कहते हैं। इसके आश्रय से केवल ज्ञानादि अनंत चतुष्टय की प्राप्ति कार्य शुद्ध पर्याय कहलाती है। इसे ही कार्य परमात्मा भी कहते हैं। पर्यायों के उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि पर्याय-बुद्धि वाला जीव मिथ्यादृष्टि होता है। फिर इनके ज्ञान की क्या उपयोगिता है? त्रिपादत्मक द्रव्य, गुण और पर्याय में द्रव्य त्रिकाल शुद्ध है जिसे कारण परमात्मा या कारण शुद्ध पर्याय कहा है। पदार्थो के सत् स्वरूप और उनकी स्वतंत्रता का ज्ञान कर आत्मा के द्रव्य स्वभाव रूप परमपारिणामिक भाव का आश्रय या स्व-सन्मुखतासे मति-श्रुत ज्ञानादि को सम्यक कर विशुद्ध परिणामों को पार कर शुद्धोपयोग द्वारा समस्त कर्मो का क्षय कर केवलज्ञानादि अनंत चतुष्टय रूप कार्य परमात्मा बना जा सकता है। आचार्य कुन्द कुन्द ने त्रिपदात्मक द्रव्य के लक्षण के ज्ञान-अनुभव को सुफल मोहग्रंथि का क्षय होना बताया है। उन्हीं के शब्दों में जो जाणदि अरहतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं सो जाणदि अप्पाणं मोहोखलु जादि तस्स लयं । (प्रवचनसार, 80)

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