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भक्ति से मुक्ति भक्ति में आपार शक्ति है। संसार रूपी समुद्र में भटकते हुए, दुःखों से त्रस्त प्राणी इसी शक्ति के द्वारा परमपद-मोक्ष तक को प्राप्त कर लेता है। परन्तु भक्तिमार्ग की प्रेरणा देने वाला निमित्त भी अनिवार्य है। श्री सम्मेद शिखर चालीसा ऐसी ही भक्ति रचना है।
-पद्मचन्द्र शास्त्री श्री सम्मेद-शिखर चालीसा
।। दोहावली ।। शाश्वत तीरथराज का, है यह शिखर विशाल । भक्ति-भाव से मैं रचूँ, चालीसा नत भाल।। जिन-परमेष्ठी सिद्ध का, मन में करके ध्यान। करूं शिखर सम्मेद का, श्रद्धा से गुण-गान।। कथा शिखर जी की सदा, सुख-संतोष प्रदाय। नित्य-नियम इस पाठ से, कर्म-बंध कट जाय।। आए तेरे द्वार पर, लेकर मन में आस। शरणागत को शरण दो, नत हैं 'शकुन-सुभाष' ।।
।। चौपाई ।। जय सम्मेद शिखर जय गिरिवर, पावन तेरा कण-कण प्रस्तर।। मुनियों के तप से तुम उज्ज्वल, नत मस्तक हैं देवों के दल।।1।। जिनराजों की पद-रज पाकर, मुक्तिमार्ग की राह दिखाकर। धन्य हुए तुम सब के हितकर, इन्द्र प्रणत शत शीश झुकाकर ।।2।।