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अनेकान्त-56/3-4
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जार्ज बर्नार्ड शॉ ने लिखा है-- 'हमारे जीवन में दो दुःखद घटनाएँ घटती है। पहली यह कि हमें अपनी मनचाही वस्तुएँ मिलती नहीं हैं। दूसरी यह कि वे हमें मिल जाती है।'
'There are two tragedies in life One is not to get your heart's dlesire The other is to get it!
-George Bernard Show जोड़ने और जोड़ते ही चले जाने की धुन कभी किसी को सुखी नहीं बना पाई। परिग्रह ने जब दी है, प्यास ही दी है, तृप्ति देने की सामर्थ्य उसमें नहीं है। परिग्रह की वाञ्छा आकुलताओं को जन्म दे सकती है, परन्तु अनाकुलता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। परिग्रह की लालसा व्यक्ति को दौड़ाती बहुत है, परन्तु वह पहुँचाती कहीं नहीं। यही परिग्रह की यथार्थता है
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 'आत्मा' से 'परमात्मा' की यात्रा करने वाला यह जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। इसकी मौलिक और स्वतन्त्र परम्परा है। यह किसी की शाखा नहीं है। अहिंसा जैन संस्कृति की अमूल्य निधि है। जैन अनुशासन अहिंसा की ही मूलभित्ति पर खडा है। अनेकांत जैन विचार का मूलाधार है। वास्तु स्वातन्त्र्य की उद्घोषणा करने वाले जैन धर्म में कर्मणा वर्ण-व्यवस्था को स्वीकार कर जो समतामूलक समाज व्यवस्था दी गयी है वह जैन धर्म की अनन्य देन है।
शोध छात्रा
संस्कृत विभाग, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दमोह (म.प्र.)