Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 230
________________ अनेकान्त-56/3-4 जब तक इच्छा है, दुःख है 1 जिसमें भी इच्छा है, दुःखी है । इच्छा का जन्म क्यों होता है ? अपने भीतर अभाव की अनुभूति से । इस अनुभूति का कारण ? आत्मा के वास्तविक स्वरूप का अज्ञान । स्वरूप ? अनन्तान्दमय । 95 जब तक आत्मा के इस वास्तविक स्वरूप का अज्ञान रहता है व्यक्ति बाहर सुख की खोज में भटकता रहता है इसके लिए वह विषयों की शरण में जाने का प्रयास करता है, जहाँ सुख नहीं, केवल सुख का आभास है, अस्थायी या अचिरस्थायी सुख है । फिर विषयों से मन तृप्त कहाँ होता है ? एक इच्छा के बाद दूसरी ओर छोटी के बाद बड़ी उत्पन्न होती ही रहता है। इच्छा की पूर्ति का प्रयास इसलिए विफल रहता है । आचार्य पूज्यपाद (ई. 5वीं 6वीं शती) ने 'इष्टोपदेश' में लिखा है 'आयुर्वृद्धिक्षयोत्कर्ष, हेतुं कालस्य निर्गमम् । वाञ्छतां धनिनामिष्टं जीवितात्सुतरां धनम् ।।' " - आचार्य पूज्यपाद : इष्टोपदेश / 15 अर्थात् जिस गति से काल व्यतीत होता है उसी गति से आपकी आयु भी क्षीण होती जाती है। इसके बाद भी आप अपनी प्रतिक्षण खिरती हुई आयु का कोई सार्थक उपयोग नहीं करना चाहते है । यह जानते हुए भी धन की ही आकांक्षा में लगे हुए हैं। इससे सिद्ध होता है कि आप अपने जीवन से अधिक, अपनी धन सम्पदा को चाहते हैं । आपकी बुद्धि विलक्षण है । आचार्य गुणभद्र स्वामी (ई. 8वीं शती का उत्तरार्ध) ने 'आत्मानुशासन' में लिखा है

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