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अनेकान्त-56/3-4
दोनों ही घटित हो जाते हैं। इसके लिए सोने का उदाहरण सटीक है। सोना, कुंडल, कान इत्यादि परिणामों का कर्ता है और ये परिणाम ही उसके कर्म हैं। अन्य द्रव्यों में उसका कर्तापना बिल्कुल भी नहीं है। फिर जो कि हमारी समस्या थी कि अन्य परद्रव्यों का कर्ता कौन? उसका समाधान यह है कि परद्रव्य भी स्वयं ही अपने परिणामों के कर्ता हैं, न कि कोई आत्मादि अन्य द्रव्य।
इसी प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द ने अनेक स्थलों पर दृष्टान्तों के माध्यम से वस्तु स्वभाव को समझाने का यत्न किया है। ये दृष्टान्त मनोविज्ञान के भी विषय है। ज्ञाता के मनोभावों एवं मानसिक स्तर को भांपते हुये वक्ता जब सटीक दृष्टान्त प्रस्तुत करता है तब उसका अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। कुन्दकुन्दाचार्य के दृष्टान्तों को ही लेकर अनुसंधान कार्य भी किया जा सकता है। अपने इस लघु आलेख में मैने मात्र दो उदाहरणों को प्रस्तुत किया है। हम भारतीय दर्शन और साहित्य पर यदि दृष्टिपात करें तो अनेक स्थल पर इन उदाहरणों का प्रयोग मिल जायेगा। अनुसंधान में यह भी यद्यपि अपेक्षित था किन्तु हमने स्वयं को समयसार तक ही सीमित रखा है।
सन्दर्भ
जहफलिहमणी सुद्धो ण सय परिणमदू रायभाईहिं। रगिज्जदि अण्णहि दु सो स्तादीहि दव्वेहि।। एव वाणी सुद्धो ण सय परिणमइ रायभाईहि । राइज्जदि अण्णेहि दु सो रागदीहि दो सेहि।।
__ -समयसार-आचार्य कुन्दकुन्द, सपा प पन्नालाल
गाथा - 278, 279, पृ. 358, प्रका परम श्रु. प्रभा. म., अगास, 1982 2 न जातु रागादिनिमित्त भावमात्मात्मनो याति यथार्ककान्त । तस्मिन्निमित्त पर सन एव वस्तुस्वभावोऽयमुदेति तावत् ।।
___-आत्मख्याति टीका, कलश-175, वही, पृ 359
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इति वस्तुस्वभाव स्वं ज्ञानी जानाति तेन स.। रागादीन्नात्मनः कुर्य्यान्नातो भवति कारकः ।।
-वही, कलश-176