Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 239
________________ जैन इतिहास-लेखन की आवश्यकता -डॉ. विजयकुमार जैन इतिहास हमारी संस्कृति के विकास की गाथा है, जहाँ धार्मिक इतिहास हमारे धार्मिक मनोबल को बढ़ाता है, वही राजनैतिक इतिहास हमारे देश के गौरव को बढ़ाता है। भारत का धार्मिक एवं राजनैतिक इतिहास बहुत कुछ मिला जुला भी है, वे ही धार्मिक मान्यताएं ऐतिहासिक रूप ले पाती हैं जिनको राजनैतिक संरक्षण मिलता है विशेषकर वैदिक एवं बौद्धपरम्परा का इतिहास राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कर पनपता रहा है। जैनपरम्परा ने प्रारम्भ में जरूर राजनैतिक संरक्षण प्राप्त किया पश्चात् स्वयं अपने श्रावकों, अनुयायियों की बदौलत अपना इतिहास दुहरा रही है। सही ही कहा गया है कि यह थे वीर जिनका नाम सुनकर जोश आता है। रगों में जिसके अफसानो पे चक्कर खून खाता है।। श्रमण परम्परा का वाहक जैनधर्म पहले आर्हत् धर्म आदि नामों से प्रसिद्ध था, जिनके उपासकों को आज जैन नाम दिया जाता है। जैनधर्म के इतिहास एवं जैन साहित्य का इतिहास नाम से प्रचुर सामग्री उपलब्ध है। यह सामगी हमारे पास भरी पड़ी है, लेकिन अभी भी आवश्यकता है कि इसमें अवगाहन करके परिमार्जित रूप में हम प्रस्तुत करें अतः संक्षेप में महत्त्वपूर्ण सामग्री का परिचय दिया जा रहा है। ___ डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वारा रचित तीर्थकर महावीर और उनकी परम्परा में समग्र मुनि परम्परा का तथ्यपूर्ण इतिहास है। श्रमणपरम्परा के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में श्रमणों की मान्यताओं एवं जैन सिद्धान्तों का भी सफल निरूपण किया गया है। चार भागों में प्रकाशित इस वृहत्काय ग्रन्थ में भगवान महावीर के बाद हुए आचार्यो, साहित्यकारों का परिचय देते हुए उनकी साधना एवं कृतित्त्व का विवेचन किया गया है। डॉ. कोठिया जी के शब्दों में भगवान

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