Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 241
________________ 106 अनेकान्त-56/3-4 पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री के शब्दों में विद्वानों की रुचि जैन इतिहास के प्रति कम है। इसे मानना ही पड़ेगा । जैन पुराणों की प्रामाणिकता - जैनधर्म का इतिहास जानने के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पुराण हैं । इन पुराण ग्रन्थों के रचनाकाल और उनमें वर्णित घटनाओं के काल में अनेकों वर्षो का अन्तर है । इनकी ऐतिहासिक प्रमाणिकता इस बात पर अवलम्बित है कि वे कहाँ तक प्राकृतिक नियमों के अनुकूल मानवीय विवेक के अविरुद्ध व अन्य प्रमाणों के अप्रतिकूल घटनाओं का उल्लेख करते हैं। यदि ये घटनाए प्रकृति-विरुद्ध हो, मानवीय बुद्धि के प्रतिकूल हो, अन्य प्रमाणों से वाधित हो, तो वे धार्मिक श्रद्धा के सिवाय किसी अन्य आधार पर विश्वसनीय नहीं मानी जा सकती पर यदि वे उक्त नियमों और प्रमाणों से बाधित न होती हुई पूर्वकाल का युक्तिसंगत दर्शन कराती हो । अब तक के इतिहास-लेखन की बड़ी भारी आवश्यकता है। यह कार्य बडे महत्त्व का एवं श्रम-साध्य है 1 विद्वानो का मानना है कि कोई भी धार्मिक इतिहास अपनी परम्परा से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता, उसी तरह राजनैतिक इतिहास तत्कालीन राजाओं से प्रभावित होता है फिर भी एक सीमा तक सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए जैसे- भारत की गुलामी का इतिहास है उसे कैसे मिटा सकते है, भले ही उस समय कितने देश-भक्तों का गौरवपूर्ण इतिहास है उनकी कुर्बानी की गाथा है 1 इसी प्रकार हमको धार्मिक उतार-चढ़ाव के बीच सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए। इससे एक बात महत्त्वपूर्ण है कि यह भ्रम हटाना चाहिए कि सब कुछ पुराना अच्छा होता है क्योंकि पहले चोरी हुई होगी तभी अचौर्याणुव्रत का प्रतिपादन किया गया होगा, पहले हिंसा हुई होगी तभी हम अहिंसा की बात करेगे । इसलिए जो पहले है वह श्रेष्ठ है तब तो हिंसा श्रेष्ठ हो जाएगी । हमारी कसौटी भी साक्ष्य के आधार पर पूर्णतया आधारित नहीं है । हमारी कसौटी है कि जो सिद्धान्त अहिंसा एवं वीतरागता का पोषक है उसके हम

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