________________
अनेकान्त-56/3-4
सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। शुक्लध्यान की इस स्थिति को 'एकत्व-वितर्क-अविचार' कहा जाता है।
(3) सूक्ष्मक्रिया-अनिवृत्ति प्रतिपाती-द्वितीय शुक्लाध्यानावस्था में साधक आत्मा को केवलज्ञान हो जाने से वह समस्त वस्तुओं के द्रव्य और पर्यायों को युगपद् जानने लग जाता है। घातिकर्म को क्षय कर देता है और अघातिकर्म शेष रहते हैं। जिनकी आयु-कर्म कम हो और शेष तीन कर्मो की स्थिति अधिक हो तो आयुसम करने के लिए उनके 'केवली-समुदघात' होता है।
(4) समुच्छिन्न-क्रिया-अप्रतिपाती-तीसरे ध्यान के बाद चतुर्थ ध्यान प्रारम्भ होता है। इसमें योगों (मन-वचन-काय का व्यापार) का पूर्णतः उच्छेद हो जाता है। सूक्ष्मक्रिया का भी निरोध हो जाता है, उस अवस्था को 'समुच्छिन्न-क्रिया-अप्रतिपाती' कहा जाता है। इसका पतन नहीं होता, इसलिए यह अप्रतिपाती है।
ध्यान को जानने के उपाय ध्यान को समझने के लिए निम्न बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए। (1) ध्यान की भावना (ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वैराग्य एवं मैत्र्यादि)। (2) ध्यान के लिए उचित देश या स्थान। (3) ध्यान के लिए उचित काल ।
ध्यान के लिए उचित आसन। (5) ध्यान के लिए आलंबन। (6) ध्यान का क्रम (मनोनिरोध या योगनिरोध)। (7) ध्याता का विषय (ध्येय) (8) ध्याता कौन? (9) अनुप्रेक्षा। (10) शुद्धलेश्या। (11) ध्यान का फल (संवर, निर्जरा)