________________
अनेकान्त-56/3-4
मध्यम-त्यक्त परिग्रह में कदाचित् ममत्व भाव।
जघन्य-पूर्व एवं प्रकृत प्रतिमा का सदोष पालन। 10. अनुमतित्याग प्रतिमा
उत्तम-लौकिक कार्यों में स्वजनों को अनुमति का पूर्ण त्याग। मध्यम-कदाचित् स्वजनों को लौकिक कार्यों में अनुमति।
जघन्य-पूर्व एवं प्रकृत प्रतिमा का सदोष पालन। 11. उदिदष्टत्याग प्रतिमा
उत्तम-उद्दिष्ट आहार-पान का यावज्जीवन त्याग तथा निर्दोष पालन । मध्यम-कभी-कभी उद्दिष्ट त्याग में दोष। जघन्य-पूर्व एवं प्रकृत प्रतिमा का सदोष पालन।
उपर्युक्त “ग्यारह प्रतिमाओं के धारकों को नैष्ठिक कहते है और जीवन के अन्त मे समाधिमरण कर आत्मार्थ के साधन करने वालों को साधक कहते हैं। अतः नैष्ठिक श्रावक बनने और समाधिमरण करने की प्रतिदिन भावना करनी चाहिए।'
यहाँ यह कथ्य है कि श्रावक का प्रतिमाओं के आधार पर वर्णन श्रावक के माप या उसके आगे-आगे विस्तार को जानने के लिए किया गया है। प्रतिमा शब्द का अर्थ माप या विस्तार भी है।
सन्दर्भ
1 अभिधानराजेन्द्रकोश, सप्तम भाग, सावय शब्द, पृष्ठ 779, 2 वहीं, 3 श्रावकाचारसग्रह, भाग-4 प्रस्तावना पृष्ठ 59 से उद्धृत, 4 रत्नकरण्डश्रावकाचार, 33 5 वही, श्लोक 136 की उत्थानिका, 6 पाक्षिकादिभिदा त्रेधा श्रावकस्तत्रपाक्षिक ।
तद्धर्मगृहयस्तान्निष्ठो नैष्ठिक साधक स्वयुक्। -सागार धर्मामृत, 1/20 7. महापुराण, 39/143-150, 8. सागार धर्मामृत, 3/1 9 दोष सशोध्य सजातं पुत्रे न्यस्य निजान्वयम्। त्यजत सद्य चर्यासयान्निष्ठावान्नामभेदतः ।।