Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 206
________________ अनेकान्त-56/3-4 71 जैन दर्शन आत्मवादी दर्शन है अतः स्वभाविक ही उसकी दृष्टि में वस्तुतः आत्मा ही प्रामाण्य है, ज्ञान नहीं। इस विषय में धवला में कहा गया है'ज्ञानस्यैव प्रामाण्यं किमिति नेष्यते । न, जानाति परिछिनत्ति जीवादिपदार्थानिति ज्ञानात्मा, तस्यैव प्रामाण्याभ्युपगमात्। न ज्ञानपर्यायस्य स्थितिरहितस्य उत्पाद-विनाशलक्षणस्य प्रामाण्यम्, तत्र त्रिलक्षणाभावतः । अवस्तुनि परिच्छेदलक्षणार्थ क्रियाभावात्, स्मृति-प्रत्यभिज्ञानुसंधान प्रत्ययादीनामभाव-प्रसंगाच्च ।।8 अर्थात-ज्ञान को ही प्रमाण स्वीकार क्यों नहीं करते? उत्तर देते हुए कहा है-नहीं, क्योंकि 'जानातीति ज्ञानम्' इस निरुक्ति के अनुसार जो जीवादि पदार्थो को जानता है वह ज्ञान अर्थात् आत्मा है। उसी को प्रमाण स्वीकार किया गया है। उत्पाद व व्यय स्वरूप किन्तु स्थिति से रहित ज्ञान पर्याय की प्रमाणता स्वीकार नहीं की गयी, क्योंकि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप लक्षणत्रय का अभाव होने के कारण अवस्तु स्वरूप उसमें परिच्छित्तिरूप अर्थक्रिया का अभाव है तथा स्थिति रहित ज्ञान पर्याय को प्रमाणता स्वीकार करने पर स्मृति प्रत्यभिज्ञान व अनुसंधान प्रत्यनों के अभाव का प्रसंग आता है। प्रमाण के भेद :- प्रमाणों की संख्या के विषय में भी भारतीय दार्शनिक एकमत नहीं है। चार्वाक केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है। बौद्ध दर्शन प्रत्यक्ष व अनुमान दो प्रमाण मानता है। साख्य दर्शन प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम इन तीन प्रमाणों को स्वीकार करता है। न्याय दर्शन प्रत्यक्ष अनुमान आगम व उपमान इन चार प्रमाणों को मानता है। प्रभाकर मतानुयायी प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान व अर्थापत्ति इन पाँच को मानते हैं। जैमिनी (मीमासा दर्शन) प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव इन छह प्रमाणों को मानता है। जैन दर्शन प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो ही प्रमाणों को मानता है। पं. कैलाशचंद जी शास्त्री का यह कथन ठीक ही है- 'प्रमाण की चर्चा दार्शनिक युग की देन है। इसी से कुन्दकुन्द के प्रवचनसार में ज्ञान और ज्ञेय की चर्चा होने पर भी प्रमाण और प्रमेय शब्द नहीं मिलते। अतः कुन्दकुन्द ने ज्ञान के दो ही भेद किये हैं प्रत्यक्ष और परोक्ष। किन्तु कुन्दकुन्द की ही परम्परा में प्रवचनसार के पश्चात् रचे गये तत्त्वार्थसूत्र नामक

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