________________
ध्यान-ध्याता-ध्येय
-(डॉ.) श्रीमती राका जैन संसार में प्राणी नाना प्रकार की आधि (मन की बीमारी) व्याधि (तन की बीमारी) और उपाधि (कषायादि भावना की बीमारी) से त्रस्त हैं, वे दुःखों से मुक्त होना चाहते हैं किन्तु मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। इसका एकमात्र कारण है सम्यक् श्रद्धा का अभाव। संसार चक्र से मुक्ति पाने के लिए सही पुरुषार्थ है मोक्ष । मोक्ष पाने तक ध्यान-ध्याता-ध्येय ही एक मात्र सहायक है। मोक्ष का साधन ध्यान है साधक ध्याता है और ध्येय साध्य ‘आराध्यदेव' है। ध्यान-ध्याता-ध्येय की अभिन्न दशा अथवा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र का एकीकरण, साध्य-साधन-साधक का समष्टि रूप ही मोक्षदशा है- कविवर दौतलराम जी ने स्पष्ट लिखा है
जहां ध्यान-ध्याता-ध्येय को न विकल्प वच भेदन जहां, चिद्भाव कर्म चिदेश करता चेतना किरिया तहां। तीनों अभिन्न अखिन्न शुद्ध उपयोग की निश्चलदशा प्रगटी जहां दृग ज्ञान व्रत-ये तीनधा एकै लशा।
ध्यान ध्यान आभ्यन्तर तप के अन्तर्गत परिगणित है। चित्त के विक्षेप का त्याग करना ध्यान तप है। आचार्य उमास्वामि ने उत्तम संहनन वाले को ध्याता की संज्ञा दी है और ध्याता के द्वारा अन्तमुहूर्त तक एक विषय में चित्तवृत्ति को रोकना ध्यान है यथा
'उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमन्तर्मुहूर्तात्।' 9/27 ज्ञान व्यग्र होता है और ध्यान एकाग्र। अतः चित्त की चंचलता को रोकने के लिए आचार्य उमास्वामी ने एकाग्र शब्द दिया है। चिन्तानिरोध ध्यान का